मंत्र जप के ये नियम अपनाएं, मिलेगी सुख-शांति -Mantra Jaap Karne ke Niyam





मंत्र जप के ये नियम अपनाएं, मिलेगी सुख-शांति -Mantra Jaap Karne ke Niyam

शास्त्रों और पुराणों में लाखों, करोड़ों मंत्रों को उल्लेख किया गया है। इन मंत्रों के बारे में कहा जाता है कि इनका संबंध किसी न किसी देवी-देवता या प्रकृति की उन शक्तियों से है जिनसे आप अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं। लेकिन अगर इन मंत्रों का ठीक से जाप ना किया जाए तो इनके जाप का नुकसान भी हो सकता है। आज हम आपको बता रहे हैं मंत्र जाप करने के कुछ नियमों के बारे में। यदि आप उन नियमों का पालन करेंगे तो आपके घर में न केवल सुख-शांति आयेगी, बल्कि आपका स्‍वास्‍थ्‍य भी अच्‍छा रहेगा। aaiye जानें मंत्र जाप करने के कुछ खास नियम…



सबसे पहले हम आपको बता दें कि मंत्र जप तीन तरह का होता है।

1. वाचिक जप

2. उपांशु जप

3. मानसिक जप



वाचिक जप- वाणी द्वारा सस्वर मंत्र का उच्चारण करना वाचिक जप की श्रेणी में आता है।



उपांशु जप- अपने इष्ट भगवान के ध्यान में मन लगाकर, जुबान और ओंठों को कुछ कम्पित करते हुए, इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करें कि केवल स्वंय को ही सुनाई पड़े। ऐसे मंत्रोचारण को उपांशु जप कहते है।



मानसिक जप- इस जप में किसी भी प्रकार के नियम की बाध्यता नहीं होती है। सोते समय, चलते समय, यात्रा में एंव शौच आदि करते वक्त भी ‘मंत्र’ जप का अभ्यास किया जाता है। मानसिक जप सभी दिशाओं एवं दशाओं में करने का प्रावधान है।



मेरूदण्ड हमेशा सीधा रखना चाहिए, जिससे सुषुम्ना में प्राण का प्रवाह आसानी से हो सके।



शरीर की शुद्धि आवश्यक है। इसलिए जरूरी है कि स्नान करके ही आसन ग्रहण किया जाए। साधना करने के लिए सफेद कपड़ों का प्रयोग करना सर्वथा उचित रहता है।



साधना के लिए कुश के आसन पर बैठना चाहिए क्योंकि कुश ऊष्मा का सुचालक होता है। जिससे मंत्रोच्चार से उत्पन्न ऊर्जा हमारे शरीर में समाहित होती है।



मंत्र का जप प्रातः काल पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए एवं सायंकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ माना गया है।



साधारण जप में तुलसी की माला का प्रयोग करना चाहिए। कार्य सिद्ध की कामना में चन्दन या रूद्राक्ष की माला प्रयोग हितकर रहता है।



अक्षत, अंगुलियों के पर्व, पुष्प आदि से मंत्र जप की संख्या नहीं गिननी चाहिए।



ब्रह्रममुहूर्त में उठकर ही साधना करना चाहिए क्योंकि सुबह का समय शुद्ध वायु से परिपूर्ण होता है। साधना नियमित और निश्चित समय पर ही की जानी चाहिए।



मंत्र शक्ति का अनुभव करने के लिए कम से कम एक माला नित्य जाप करना चाहिए।

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